लोगों की राय

नई पुस्तकें >> काँच के टुकड़े

काँच के टुकड़े

सुदर्शन प्रियदर्शिनी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16833
आईएसबीएन :9781613017623

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

सुदर्शन प्रियदर्शिनी की इक्कीस कहानियाँ

 

   PREVIEW on GoogleBooks  

 

द्वितीय संस्करण के बारे में...

 

'काँच के टुकड़े' - यह पुस्तक के रूप में अब उपलब्ध नहीं थी। क्योंकि मैंने इसे नकार पर रखा हुआ था फिर यूँ ही विचार आया कि ये तो मेरा पहला कहानी संग्रह है और यौवन की अपरिपक्वता की अठखेलियों को झुठलाया नहीं जा सकता। ये तो वह काँच की नींव होती है जो टूट जाती है पर मिटती नहीं। यह सारे जीवन की रूपरेखा को तैयार करती है और शायद मार्ग प्रशस्त भी। पर इन कहानियों को मैंने एक दिन नकार दिया था। लेकिन आज इनका उपलब्ध न होना सहन नहीं हुआ और जब ढूँढने पर पाया कि इसमें कुछ कहानियाँ तो सप्ताहिक हिंदुस्तान द्वारा पुरस्कृत और कई प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। तब सोचा इनमें कुछ तो होगा जो लिखी गईं और सराही गईं। इसीलिये इनको पुनः प्रकाशित कर पाठकों को उपलब्ध करा देनी चाहिए। साहित्य क्षेत्र में अपनी और भी पुस्तकों के साथ इनको जोड़ देना ग़लत नहीं होगा। फिर कुछ ऐसी भी कहानियाँ थी जो 70 के दशक की लिखी हुई पड़ी थीं जो कभी प्रकाशित करने के लिए भेजी नहीं गई। यह मेरा अपनी ही रचनाओं के प्रति एक उदासीन भाव था।

आज आपके हाथ में ये ‘काँच के टुकड़े’ पुनः देकर उपकृत हो रही हूँ कि शायद इनका मूल्यांकन आप कर सकें। ये उस समय की भी कहानियाँ हैं जब पाँव  में ज़रा चोट लगने पर बड़ी टीस होती थी - क्योंकि पहली पहली बार पीड़ा से परिचय होता था, बाद में तो हम पीड़ा के आदी हो जाते हैं। जो अन्दर से भी होती है और बाहर से भी। बस सहना ही एक विकल्प रह जाता है और फिर यही शाश्वत सत्य भी बन जाता है। 

- सुदर्शन प्रियदर्शिनी

2 अक्टूबर 2023

ओहियो, संयुक्त राज्य अमेरिका 

Next...

प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai